नैनीताल I उत्तराखंड मे हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा पंचायतों में नियुक्त किए गए प्रशासकों के नीतिगत फैसले लेने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा है कि प्रशासक पंचायतों में काम तो करेंगे मगर कोई भी नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते हैं।
बता दें कि पंचायत चुनाव में देरी पर दाखिल राष्ट्रपति शासन लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने सरकार व राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार लगाते हुए 31 जुलाई तक शपथ पत्र के साथ जवाब दाखिल करने को कहा है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकार ने कहा कि चार महीनों के भीतर राज्य में पंचायत चुनाव करवा दिया जाएगा, लेकिन कोर्ट इस तर्क से संतुष्ट नहीं रही। इसके साथ ही राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि जब 15 जुलाई को पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो गया था तो संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने कोर्ट में याचिका दाखिल क्यों नहीं की।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने टिप्पणी की कि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है पर संवैधानिक दायित्व निभाने पर चुप रहा। राज्य में 15 जुलाई को ग्राम पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने टिप्पणी की कि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है पर संवैधानिक दायित्व निभाने पर चुप रहा। राज्य में 15 जुलाई को ग्राम पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो गया है।
संविधान व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्यकाल पूरा होने तक चुनाव कराने अनिवार्य हैं, मगर सरकार ने चुनाव कराने के बजाए राज्य में छह जुलाई को ग्राम पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति कर दी।
राज्य सरकार चुनाव कराने में नाकाम रही तो गूलरभोज ऊधम सिंह नगर निवासी नईम अहमद ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। राज्य सरकार संवैधानिक कर्तव्य निभाने में नाकाम रही है। याचिका में मांग की गई थी कि राज्य में संविधान का अनुछेद 356 के तहत सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए।
राज्य सरकार चुनाव कराने में नाकाम रही तो गूलरभोज ऊधम सिंह नगर निवासी नईम अहमद ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। राज्य सरकार संवैधानिक कर्तव्य निभाने में नाकाम रही है। याचिका में मांग की गई थी कि राज्य में संविधान का अनुछेद 356 के तहत सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए।