राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने से क्यों डर रहे हैं ?

क्या सचमुच राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने से डर रहे  हैं ? आखिर इस डर का कारण क्या है ? आइए इस डर का कारण जानते हैं।
मार्च 23 को  केरल कांग्रेस के अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने घोषणा की कि राहुल गाँधी केरल के वायनाड लोक सभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. इसका मतलब कि राहुल गाँधी अबकी बार अमेठी के साथ साथ वायनाड से भी लोक सभा चुनाव लड़ सकते हैं। केरल ही नहीं बल्कि कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि राहुल गांधी मध्य प्रदेश , कर्नाटक या तमिलनाडु के किसी लोक सभा  सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। सीधा प्रश्न है कि आख़िर राहुल गांधी सिर्फ अमेठी से चुनाव लड़ने से क्यों डर रहे  हैं ? क्या राहुल गाँधी को अमेठी की जनता से विश्वास भंग हो गया है?
इस डर के कई कारण हैं
पहला, राहुल गांधी 2004 से अमेठी के लोक सभा एमपी हैं। 2004 और 2009 के चुनाव में राहुल गांधी भारी मतों से जीते लेकिन 2014 का लोक सभा चुनाव राहुल गाँधी जीते जरूर लेकिन इस चुनाव में स्मृति ईरानी ने ऐसा कड़ा टक्कर दिया कि विक्ट्री मार्जिन काफी घट गया जबकि स्मृति ईरानी के लिए अमेठी एक नई जगह थी फिर भी अपनी मेहनत से चुनावी माहौल को ऐसे बदला कि जीत हार का फासला  महज़ एक लाख तक सिमट के रह गया जिसे निम्नलिखित तालिका में देखा जा सकता है. डर की शुरुवात वहीं से देखा जा सकता है।

अमेठी लोक सभा चुनाव : 2014

पार्टी        उम्मीदवार         वोटों की संख्या वोट %
कांग्रेस राहुल गांधी 408, 651       46.2%
बीजेपी स्मृति ईरानी 300.748       34.38%
दूसरा , केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी चुनाव तो हार गयीं लेकिन उन्होंने अमेठी में एक तरह से अपना घर ही बसा लिया और पिछले पांच साल में शायद ही कोई महीना बिता होगा जब स्मृति ईरानी अमेठी में ना रही हों. वाजिब है कि स्मृति ईरानी स्वयं एक केंद्रीय मंत्री हैं साथ ही लखनऊ और दिल्ली दोनों में उनकी सरकार है जिससे कोई भी कार्य सम्पन्न करने में देर नहीं होती और राहुल गांधी इस वजह से अपने को अपने ही अमेठी में असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।  

तीसरा , इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेठी का गाँधी परिवार से वर्षों पुराना रिश्ता रहा है लेकिन ये भी सच है कि 1977  और 1998 में अमेठी में कांग्रेस की डेडली हार हो चुकी है। और राहुल गांधी इस सच को अच्छी तरह जानते हैं।  इसका मतलब यही हुआ कि अमेठी अभेद्य नहीं है और 1977 एवं 1998 फिर से दुहराया जा सकता है जिसे निम्नलिखित तालिका से समझा जा सकता है।

 अमेठी से लोक सभा सांसद

 वर्ष               सांसद                  पार्टी
1977             आर पी सिंह       जनता पार्टी
1980                संजय गांधी         काँग्रेस 
1981                राजीव गांधी        काँग्रेस
1984                राजीव गांधी        काँग्रेस
1989                राजीव गांधी        काँग्रेस
1991                राजीव गांधी        काँग्रेस
1991                सतीश शर्मा        काँग्रेस
1996              सतीश शर्मा           काँग्रेस
1998              संजय सिंह            भाजपा 
1999             सोनिया गांधी           काँग्रेस
2004               राहुल गांधी          काँग्रेस
2009               राहुल गांधी          काँग्रेस
2014               राहुल गांधी          काँग्रेस
चौथा, अमेठी में सपा और बसपा कांग्रेस को समर्थन करते हुए अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है उसके  बाद भी राहुल गाँधी दूसरे लोक सभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. इसका मतलब डर नहीं तो और क्या है? 

पाँचवाँ , गाँधी परिवार पहले भी साउथ से चुनाव लड़ चुके हैं.1977 में इंदिरा गाँधी राय बरेली से चुनाव हारने के बाद 1978 में चिकमंगलुरू से उप चुनाव जीतीं थीं और सोनिया गांधी ने भी  1999 के लोकसभा चुनाव में बेल्लारी सीट से चुनाव जीती थीं. दोनों स्थिति में कहीं न कहीं डर का भाव जरूर रहा होगा इस ऐतिहासिक तथ्य को नकारना असंभव है।

छठा, राहुल गांधी के लिए केरल के वायनाड को ही क्यों चुना गया है? इसके और भी कई कारण हो सकते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है इस लोक सभा क्षेत्र में मुस्लिम और क्रिश्चियन की आबादी काफी है जो परिणाम को पूरी तरह प्रभावित करेगा और इसी परिणाम को देखते हुए राहुल गांधी के लिए इस सीट को सुरक्षित समझा जा रहा है। वायनाड क्यों, इसे समझने के लिए निम्नलिखित तालिका को देखें।

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