वैसे, यह भी माना जा रहा है कि चुनाव का रुख बदलना झंडा बदल देने जितना आसान नहीं है। इतिहास गवाह है कि इसी सीट पर कभी खांटी सियासतदां हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा भी पिता की राजनीतिक विरासत पर सवार होकर समर में उतरे थे। लेकिन जिस बुलंदी के साथ उन्होंने चुनाव में कदम रखे, नतीजा उतना ही निराश करने वाला रहा। दो बार मात खाने के बाद बहुगुणा को टिहरी का रुख करना पड़ा। मनीष के सामने बहुगुणा एक नजीर हैं। लिहाजा गढ़वाल का समर उतना आसान नहीं है। भाजपा मोदी और राष्ट्रवाद की लहर पर सवार है। उसके सामने फौजियों के वोट हैं, जिस पर वह दशकों से सेंध लगाती आई है। बेशक चुनाव में उसके पास जनरल नहीं हैं, लेकिन जनरल के सिपाही के रूप में तीरथ सिंह रावत हैं, जिनकी सियासी शिक्षा का गुरुकुल पौड़ी गढ़वाल रहा है। छात्र जीवन से लेकर सांगठनिक जिम्मेदारियों और विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले तीरथ के तरकश में केंद्र और प्रदेश सरकार की उपलब्धियों के तीर हैं। कांग्रेस उन तीरों को ‘कारनामे’ करार दे रही है। उसे अपनी ताकत पर जितना भरोसा है, उतना ही भरोसा जनरल के नौजवान बेटे पर है, जो मतदाताओं के बीच सहानुभूति का मोहिनी अस्त्र चलाने की कोशिश कर रहे हैं। मगर सारा तमाशा देख रहा मतदाता खामोश है। वह चुपचाप लोहे के गर्म होने का इंतजार कर रहा है। 11 अप्रैल को उसके वोट की चोट से गढ़वाल की किस्मत बदले या न बदले, लेकिन वो सियासत का नया अध्याय जरूर लिखेगी।
मोदी मैजिक के भरोसे भाजपा
गढ़वाल लोकसभा सीट पर बदले तमाम समीकरणों के बावजूद भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। 2014 में प्रचंड मोदी लहर में भाजपा ने इस सीट पर 59.48 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे। इस बार इस सीट पर उसका इरादा वोटों की बढ़त को 62 फीसद तक करने का लक्ष्य बनाया है। लेकिन उसके लिए यह लक्ष्य आसान नहीं होगा। सियासी जानकार मानते हैं कि आज 2014 सरीखी मोदी लहर नहीं है। पिछले 57 महीनों के दौरान प्रदेश में जितने भी चुनाव हुए, उनमें भाजपा 2014 की बढ़त के आंकड़ों को नहीं छू पाई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने गढ़वाल की 14 में से 13 सीटें अपनी झोली में डाली जरूर, लेकिन मत प्रतिशत के मामले में वह 2014 से पिछड़ गई।
इतिहास के सहारे करिश्मे की आस में कांग्रेस
गढ़वाल सीट पर भाजपा सांसद बीसी खंडूड़ी के बेटे मनीष खंडूड़ी को उतारकर कांग्रेस बड़ा उलटफेर करने का इरादा रखती है। इस सीट पर कांग्रेस वर्चस्व का इतिहास रहा है। पार्टी इसी इतिहास के दम पर करिश्मे की आस लगाए हुए है। वह 2009 के लोस चुनाव को दोहराना चाहती है। इसके बाद हुए 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भी अपनी इस बढ़त को बरकरार नहीं रख पाई थी और उसके वोट प्रतिशत में गिरावट आ गई थी। लेकिन गढ़वाल में उसकी जीत में बड़ी भूमिका निभाने वाले सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत सरीखे नेता आज वहां नहीं हैं।
लोकसभा चुनाव 2014 विधानसभा चुनाव 2017
विस कांग्रेस भाजपा कांग्रेस भाजपा
बदरीनाथ 35.84 55.52 37.60 46.41
थराली 33.03 57.07 35.26 43.48
कर्णप्रयाग 33.09 57.15 37.83 51.69
केदारनाथ 34.38 56.51 24.53 20.24
रुद्रप्रयाग 28.56 60.98 25.13 50.15
देवप्रयाग 23.78 67.22 20.21 31.96
नरेंद्रनगर 25.56 67.75 8.23 45.85
यमकेश्वर 29.09 64.28 22.27 42.61
पौड़ी 38.67 53.62 31.62 53.95
श्रीनगर 35.41 56.29 36.79 51.23
चौबट्टाखाल 36.41 54.61 31.66 48.82
लैंसडौन 34.75 58.35 39.64 55.92
कोटद्वार 29.25 65.75 40.13 56.05
रामनगर 35.71 56.99 35.10 46.20
लोकसभा चुनाव 2009 विधानसभा चुनाव 2012
विस कांग्रेस भाजपा कांग्रेस भाजपा
बदरीनाथ 46.89 37.65 39.08 20.53
थराली 45.60 38.19 32.86 31.59
कर्णप्रयाग 47.52 38.90 22.78 32.86
केदारनाथ 49.75 43.51 42.04 37.13
रुद्रप्रयाग 42.59 43.51 29.65 27.10
देवप्रयाग 35.05 49.53 26.77 15.83
नरेंद्रनगर 49.53 39.31 42.65 43.47
यमकेश्वर 43.55 45.03 32.20 23.96
पौड़ी 52.02 38.12 42.82 36.40
श्रीनगर 48.68 38.68 51.27 41.99
चौबट्टाखाल 50.48 37.06 29.28 33.78
लैंसडौन 37.55 50.12 24.97 38.70
कोटद्वार 46.71 42.96 51.19 43.75
रामनगर 40.20 29.30 37.00 31.21
स्रोत: डाटा निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से लिया गया है।

