देहरादून. उत्तराखंड में आईएसएस अधिकारियों के लिए बाकी राज्यों के मुकाबले माहौल काफी बेहतर माना जाता है. जी हां, उत्तराखंड की वादियों में काम के साथ सुकून हर किसी को पसंद आता है. इसलिए रिटायरमेंट के बाद भी मुख्य सचिव रैंक के अधिकारी उत्तराखंड नहीं छोड़ना चाहते हैं, लेकिन सीनियर आईएएस उमाकांत पंवार के बाद अब सीनियर महिला आईएएस भूपिंदर कौर औलख ने ये भी वीआरएस का फैसला लिया है.
उत्तराखंड कैडर की 1997 बैच की आईएएस हैं औलख
उत्तराखंड कैडर की 1997 बैच की आईएएस भूपिंदर कौर औलख ने वीआरएस ले लिया है. राज्यपाल की तरफ से वीआरएस मंजूर होने के बाद अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने नोटिफिकेशन जारी किया. हालांकि भूपिंदर कौर औलख की अभी 10 साल की सर्विस बाकी थी, लेकिन अब वो वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में सेवा देंगी. जबकि औलख का अगला ठिकाना बांग्लादेश की राजधानी ढाका होगा जहां वह वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन में डिप्टी हेड का चार्ज संभालेंगी. उनका यह कार्यकाल दो साल का होगा.
ये है वजह
अपर मुख्य सचिव कार्मिक की तरफ से स्पेशल सेक्रेटरी भारत सरकार को लिखे पत्र के मुताबिक, कोरोना संकट में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन बांग्लादेश में बतौर डिप्टी हेड उनकी सेवाएं चाहता है और उन्हें 30 अप्रैल 2020 से अपनी ज़िम्मेदारी संभालनी थी, लेकिन अब वो 15 मई के बाद बांग्लादेश में काम कर सकेंगी.
यहां तैनात रहीं है भूपिंदर कौर औलख
उत्तराखंड कैडर की 1997 बैच की आईएएस भूपिंदर कौर औलख इस वक्त सिंचाई विभाग में सचिव के पद पर तैनात थीं. जबकि इससे वह पहले शिक्षा और खेल विभाग की सचिव रह चुकी हैं. आपको बता दें कि आईएएस भूपिंदर कौर औलख का प्रमोशन प्रमुख सचिव पद पर होना था और इसके बाद उन्हीं के बैच के आर के सुधांशु और एल फनाई का नंबर है.
कोरोना की वजह से गांवों में सौहार्द बिगड़ा
अल्मोड़ा और उत्तरकाशी में घर लौटे प्रवासियों के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने इस बारे में सरकार से जवाब तलब किया है. दूसरी तरफ इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है. कांग्रेस का कहना है कि सरकार की गलती की वजह से गांवों का माहौल खराब हो रहा है, आपसी सौहार्द बिगड़ रहा है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि मुख्यमंत्री के लौटने वाले प्रवासियों में से 25,000 लोगों के कोरोना संक्रमित होने के बयान ने आग में घी का काम किया है. जो लोग मजबूरी में, जान बचाने के लिए अपने घर लौट रहे हैं गांव वाले उन्हें दुश्मनी की नजर से देखने लगे हैं, कई जगह मारपीट की नौबत आ गई है. इससे बचा जा सकता था अगर सरकार इन लोगों को सीधे घर भेजने के बजाय मैदानी क्षेत्रों में ही होम क्वारंटाइन करती.

