नई दिल्ली I हम होंगे कामयाब…जरूर होंगे कामयाब…चंद्रमा की सतह पर एक दिन जरूर उतरेगा चंद्रयान. ये आवाज और बुलंद इरादे देश के हैं. जिस मिशन को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों ने न जाने कितनी रातें कुर्बान कर दीं वो मिशन भले ही कामयाब नहीं हो सका लेकिन इरादे कमजोर नहीं हुए हैं. देश आज अपने वैज्ञानिकों को सलाम कर रहा है.
धरती से 3 लाख 84 हजार 400 किलोमीटर दूर चमकते चांद को छूने का सपना, चांद की जमीन पर उतरने का मकसद और अपने बलबूते इस मकसद को हासिल करने की लगन. पिछले 11 सालों से इसरो के वैज्ञानिक दिन-रात इसी सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश में जुटे थे.
2008 में चंद्रयान-1 की कामयाबी के बाद वैज्ञानिकों ने नई चुनौतियों और नए लक्ष्यों के साथ मिशन चंद्रयान-2 की रूपरेखा तैयार की थी. भारत के पहले चंद्रयान ने चांद की कक्षा तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की तो चंद्रयान-2 के लिए रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी हुई थी.
आसान नहीं चांद का सफर
वैज्ञानिक परीक्षण के लिए कई उपकरणों के साथ रोवर 14 दिन तक चांद की जमीन पर सैर करने वाला था लेकिन लैंडर और रोवर के साथ चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहंचने की तैयारी का ये सफर इतना आसान भी नहीं था. चंद्रयान-2 के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को 2008 में मंजूरी मिल गई थी. तब भारतीय वैज्ञानिकों के पास अपना लैंडर नहीं था.
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी से उन्हें लैंडर मिलने वाला था. 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार हुआ और जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय की गई. किसी वजह से रूसी अंतरिक्ष एजेंसी लैंडर नहीं दे पाई. अब इसरो के वैज्ञानिकों ने खुद इसकी तैयारी शुरू की. करीब 960 करोड़ की लागत से चंद्रयान-2 का पूरा प्रोजेक्ट तैयार हुआ था.

