स्कूलों पर ताला लटक जाने से वहां तैनात शिक्षकों की नौकरी पर आंच आ सकती है। यही वजह है कि अब स्कूलों का वजूद बचाने के लिए मास्टर जी को ही हाथ पांव मारने पड़ रहे हैं। वे द्वार-द्वार जाकर अभिभावकों से फरियाद लगा रहे हैं कि वे अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला कराएं। सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के वे उन्हें फायदे गिना रहे हैं।
राज्य गठन के 19 सालों में कम छात्र संख्या के कारण 800 से अधिक स्कूलों पर ताला लटक चुका है। जबकि 28 सौ से अधिक स्कूलों में कभी भी ताला लटकने की आशंका है। यही वजह है कि शिक्षा विभाग की ओर से प्रदेश भर में इन दिनों प्रवेशोत्सव मनाया जा रहा है।
शिक्षा निदेशक आरके कुंवर के मुताबिक प्रवेशोत्सव के तहत शिक्षक घर-घर जाकर संपर्क अभियान चला रहे हैं। अभियान के तहत अभिभावकों को बताया जा रहा है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। मिड डे मील के साथ ही सरकार की ओर से फ्री ड्रेस दी जा रही है। किताबें एवं कुछ अन्य सुविधाएं भी बच्चों को दी जा रही हैं।
प्रवेशोत्सव का नहीं दिख रहा असर
यह है वजह
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में पब्लिक स्कूलों के प्रति बढ़ता आकर्षण और पलायन घटती छात्र संख्या की अहम वजह है। स्कूलों में सुविधाओं का भी अभाव है। कई स्कूल भवन जर्जर हैं।
उन जनपदों में छात्र संख्या अधिक घटी है जहां सबसे अधिक पलायन हुआ है। इनमें खासकर पौड़ी और अल्मोड़ा दो ऐसे जनपद हैं, जहां सबसे अधिक स्कूल बंद हुए हैं। अब शिक्षक घर-घर जाकर अभिभावकों से बात कर रहे हैं, यदि छात्र संख्या घटेगी तो स्कूल बंद कर दिए जाएंगे। वहां तैनात शिक्षकों का दूसरी जगह तबादला कर दिया जाएगा।
-आरके कुंवर, शिक्षा निदेशक

