कई हेक्‍टेयर जंगल खाक होने के बाद विभाग को हुआ अहसास, वन और जन के बीच है कुछ खटास

‘जब जागो तभी सवेरा।’ वन विभाग पर यह कहावत सटीक बैठती है। लंबी प्रतीक्षा के बाद उसे अहसास हुआ है कि वन और जन के मध्य रिश्तों में कुछ खटास है, जिसे दूर करने की अब उसने ठानी है। इसी कड़ी में वनों को आग से बचाने के दृष्टिगत बेहतर कार्य करने वाली वनाग्नि प्रबंधन समितियों को पारितोषिक देने का निश्चय किया गया है। इस फायर सीजन के बाद ऐसी 39 समितियों को 22.75 लाख रुपये की धनराशि बतौर पुरस्कार प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही वन पंचायतों में औषधीय व सगंध पादपों की खेती को 625 करोड़ का प्रोजेक्ट को पहले ही हरी झंडी दी जा चुकी है। वृक्ष संरक्षण अधिनियम में भी संशोधन कर आमजन को राहत दी गई है। सरकार को उम्मीद है कि इन प्रयासों से वह वनों की सुरक्षा में आमजन का सक्रिय सहयोग हासिल कर सकेगी।

वन और जन के मध्य रहा है मजबूत रिश्ता
एक दौर में 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन और जन के मध्य मजबूत रिश्ता रहा है। यहां के लोग वनों से अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के साथ ही इन्हें निरंतर पनपाते भी थे। वन अधिनियम 1980 के अस्तित्व में आने के बाद वन-जन के इस रिश्ते में दूरी बढ़ी। ऐसा नहीं है कि यहां के लोग वनों की सुरक्षा में सहयोग नहीं देते, लेकिन इसमें वर्ष 1980 से पहले जैसी बात नहीं हैं। इसके पीछे वनों के सरकारीकरण का भाव समाहित है। यही कारण भी है कि वनों की आग और तस्करों से सुरक्षा के मामले में जिस तरह का जनसहयोग मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पा रहा। लंबी प्रतीक्षा के बाद सरकार को इसका अहसास हुआ और पिछले वर्ष से उसने कुछ कदम उठाने प्रारंभ किए। इसी कड़ी में वृक्ष संरक्षण अधिनियम में संशोधन करते हुए केवल 15 वृक्ष प्रजातियों को ही प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया। पहले इनकी संख्या 27 थी। शेष प्रजातियों को छूट के दायरे में रखा गया है, ताकि किसी व्यक्ति को आवश्यकता पडऩे पर पेड़ काटना पड़े तो उसे अनुमति के लिए विभाग के चक्कर न काटने पड़ें। इसके साथ ही राज्य की 11215 वन पंचायतों को आजीविका से जोड़ा जा रहा है। इसके लिए वन पंचायतों के अधीन वन क्षेत्रों में औषधीय व सगंध पादपों की खेती कराने को कदम उठाए जा रहे हैं। इस खेती की निकासी और मार्केटिंग का जिम्मा भी वन पंचायतों को दिया गया है।

एक और महत्वपूर्ण कदम
सरकार के इन कदमों को आमजन को वन से जोडऩे के तौर पर देखा जा रहा है। अब इसमें एक और महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया गया है। वनों की आग से सुरक्षा के दृष्टिगत ग्राम स्तर पर वनाग्नि प्रबंधन समितियां गठित की गई हैं। अभी तक संवेदनशील और अति संवेदनशील क्षेत्रों में 415 समितियां गठित की जा चुकी हैं। अग्नि नियंत्रण में बेहतर कार्य के लिए इन समितियों को राज्य स्तर पर पारितोषिक देने का निश्चय किया गया है।
वन मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार अग्निकाल में बेहतर कार्य के लिए 39 वनाग्नि प्रबंधन समितियों को पुरस्कृत किया जाएगा। इसमें एक लाख की राशि के 13 प्रथम पुरस्कार, 50 हजार के राशि के 13 द्वितीय और 25 हजार रुपये की राशि के 13 तृतीय पुरस्कार शामिल होंगे। निकट भविष्य में यह राशि बढ़ाई जा सकती है। इस कदम से वनों की आग से सुरक्षा के दृष्टिगत समितियों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ेगी।