अमेरिका तक हैं दून की बेकरी के दीवाने, यहां मौजूद हैं सालों पुरानी बेकरियां

देहरादून। देहरादून के मशहूर पलटन बाजार की गलियों से गुजरते हुए बेकरी उत्पादों की खुशबू अनायास ही अपनी ओर खींच लेती है। यहां मौजूद सालों पुरानी इन बेकरियों के स्वाद का ही जादू है, जिसने देहरादून को एक मशहूर बेकरी डेस्टिनेशन के रूप में पहचान दिलाई। दरअसल, दून के बेकरी उत्पादों का स्वाद इसलिए भी खास है, क्योंकि आजादी से पहले यहां बड़ी संख्या में अंग्रेज रहा करते थे। बेकरी उत्पाद भारतीय नहीं हैं, यहां के लोग तो दाल, रोटी, सब्जी, चावल खाने वाले थे। अंग्रेजों के स्टाफ में कुछ भारतीय उनके लिए केक, बिस्कुट आदि बनाया करते थे। आजादी मिलने पर अंग्रेज तो यहां से चले गए, लेकिन बेकरी उत्पाद बनाने वाले कारीगर यहीं रहे। दूसरा बड़ा कारण ये कि दून का मौसम बेकरी उत्पादों के पूरी तरह अनुकूल है। साथ ही दून के पानी में ऐसे कई मिनरल हैं, जो बेकरी उत्पाद को बेहतर बना देते हैं। 

जौली परिवार की लजीज जायकेदार बेकरी
दून की सबसे पुरानी बेकरियों में शामिल है सनराइज बेकरी। इस बेकरी का मालिक जौली परिवार वर्ष 1950 में पाकिस्तान के चकवाल जिले से देहरादून आकर बस गया था। यहां इस परिवार ने सनराइज बेकरी के नाम से लजीज जायकेदार बेकरी उत्पाद बनाने की शुरुआत की। पाकिस्तान में भी यह परिवार बेकरी उत्पाद बनाने का ही काम करता था। तब इस परिवार के रस्क ‘पापे’ के नाम से मशहूर थे। आज भी दिल्ली, मुंबई ही नहीं, अमेरिका, कनाडा आदि देशों से भी लोग रस्क खरीदने के लिए यहां आते हैं।

शाम पांच बजे से ही बेकरी में रस्क के दीवानों की भीड़ लग जाती है। इस बेकरी में चौबीसों घंटे करीब 15 कारीगर स्वाद से भरे रस्क और बिस्कुट बनाने में लगे रहते हैं। लोगों के बीच इस बेकरी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बनने के कुछ ही घंटों में सभी सामान बिक भी जाता है। समय के साथ और ग्राहकों की मांग को देखते हुए हालांकि बेकरी में सामान बनाने की तकनीक व उपकरणों में बदलाव आया है, लेकिन स्वाद का जादू वैसे का वैसा ही है।

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